हनुमान और परशुराम जी का सृष्टि के विनाश का युद्ध


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सृष्टि के आरम्भ से ही ईश्वर ने कई बार अवतार ले कर धर्म की स्थापना की है | 
ऐसा भी समय आया जब कई अवतार एक साथ ही इस धरती पर अवतरित हुए थे, जहां त्रेता युग में भगवान विष्णु ने सातवें अवतार मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के रूप में जन्म लिया था | वहीं इस युग में भगवान परशुराम पहले से ही अवतरित हो चुके थे | वहीं इस युग में महाज्ञानी अति बलधामा महादेव के रूद्र अवतार हनुमान जी भी अवतरित हुए थे |  जिन्हे अपनी सेवा, निष्ठा,  बल एवं बुद्धि  के लिए पूजा जाता है | पर क्या हो जब ये दो शक्तियां हनुमान जी और परशुराम जी एक दूसरे के आमने सामने हो जाये | 

आइये जानते है भगवान परशुराम और हनुमान के महाप्रलयंकारी युद्ध की कथा  ‘ब्लिसफुल भक्ति हिन्दी’ के इस नयी प्रस्तुति में |




त्रेता युग की एक कथा के अनुसार कार्तवीर्य अर्जुन ने भगवान दत्तात्रेय का घोर तप कर हज़ार भुजाओं का वरदान प्राप्त किया था जिसके बल पर वो कई राजाओ को वो अपने अधीन कर समस्त जगत में महाशक्तिशाली राजा सहस्त्रबाहु कार्तवीर्य अर्जुन के नाम से प्रसिद्ध हो गए थे | 

एक दिन अपनी सेना के साथ जंगल से गुजरते वक़्त वो परशुराम जी के पिता जमदग्नि के आश्रम में ठहरे, जहाँ कामधेनु गाय से उत्पन भोजन से उनकी सारी सेना तृप्त हो गयी | जिसके कारण कार्तवीर्य अर्जुन को लालच आ गया और वो कामधेनु गाय को बलपूर्वक हर ले गए | जब ये बात परशुराम जी को पता चली तो वो गुस्से में सहस्त्रबाहु अर्जुन के महल जा पहुंचे  और उनका वध कर दिया | जिसके प्रतिशोध में कार्तवीर्य अर्जुन के पुत्रो ने निहथे परशुराम जी के पिता जमदग्नि और उनके भाइयो को मार डाला | जब परशुराम अपने आश्रम पहुंचे , तब उनकी माँ ने ये सारा वृतांत उन्हें सुनाया | अपने पिता और भाइयो की यह स्तिथि देख कर वो क्रोध अग्नि में जल उठे | 

और बोले (परशुराम जी ) - इन क्षत्रियो ने अपनी शक्ति का दुरूपयोग किया है और निर्दयता से मेरे पिता और भाइयो का वध किया है, इसके प्रतिशोध में, मैं परशुराम इस धरती से क्षत्रियों का सम्पूर्ण नाश कर दूँगा | 
परशुराम ने अपने दिव्य फरसे से इस धरती को क्षत्रिय विहीन कर दिया  था | 

पौराणिक कथाओ की माने तो, सम्पूर्ण धरती क्षत्रिय राजाओ के रक्त से लाल हो गयी थी, परन्तु भगवान् परशुराम जी का क्रोध शांत नहीं हुआ था |
और जब २१वी बार भगवान् परशुराम जी क्षत्रियो क विनाश करने निकले, तब उनके भय से बहुत सारे राजाओ ने जंगलो और पहाड़ो की शरण ले ली थी | 

वहीं एक समय की बात है, पर्वतो में विचरण करते हुए एक बार हनुमान जी को कुछ क्षत्रिय राजा एक गुफा में छुपे हुए मिले | 
उन्होंने पूछा - आप सभी कौन हैं ? इन वस्त्रों और आभुषणो से सुशोभित हो कर आप इस गुफा में क्यों छुपे हुए हैं ?
हे वानर राज हम भगवान परशुराम जी के भय से यहाँ छिपे हुए हैं, वो हमें बिना किसी अपराध के ही मारना चाहते हैं , उनकी प्रतिज्ञा अधर्मी क्षत्रियो को मारने की थी जो वो पूरी कर चुके हैं, अब वो इस पृथ्वी को क्षत्रिय विहीन कर देना चाहते हैं | 

राजाओ से सम्पूर्ण कथा जानने के बाद हनुमान जी चिंता में पड़ गए और उनके साथ अन्याय होता देख, उन्होंने उनकी रक्षा करने का वचन दिया | 

हनुमान जी ने कहा - आप सभी को अब किसी का कोई भय नहीं , आपकी रक्षा का दायित्व मैं खुद उठाऊंगा | 
हनुमान जी के इन शब्दों को सुनकर सभी राजा भयमुक्त हो गए, परन्तु परशुराम की भयंकर गर्जना अब भी उनके कानो में वज्र के सामान प्रतीत हो रही थी | 

पौराणिक कथाओ के अनुसार, हनुमान जी ने कई दिनों तक उन राजाओ के लिए वन से खाने-पीने की व्यवस्था की | और ऐसे ही जब एक दिन हनुमान जी वनो में विचरण करने गए थे , तब क्रोधित परशुराम खून में लथपथ अपने फरसे को लिए उस गुफा के पास जा पहुंचे, जहाँ क्षत्रिय राजा छिपे हुए थे |  परशुराम के भयंकर रूप को देखकर सभी राजा त्राहिमाम त्राहिमाम करने लगे , तभी उनकी पुकार सुनकर महाबली हनुमान वहां आ पहुंचे | 

हनुमान जी ने कहा - रुक जाओ | आप इन निर्दोष क्षत्रियों किस कारण मारना चाहते हैं ?

परशुराम जी - हे वानर पहले तुम अपना परिचय दो और ये बताओ तुमने मेरे कार्य में हस्तक्षेप करने का साहस कैसे किया ? क्या तुम्हे ज्ञात नहीं कि  मैंने इस धरती को २० बार क्षत्रियों के खून से लाल कर दिया हैं | 

हनुमान जी ने कहा - आपकी प्रतिज्ञा उन अधर्मी क्षत्रियो के विनाश की थी , नाकि पाप रहित राजाओ की |
 
परशुराम जी - हे वानर ! मेरा वानरकूल से कोई बैर नहीं है अतः तुम मेरे कार्य में बाधा बनने का प्रयत्न मत करो और यहाँ से हट जाओ | 

हनुमान जी - आप अतिज्ञानि पुरुष मालुम होते हैं पर इस निर्दय कार्य से आपके ही हाथ मैले होंगे | अतः आप इन राजाओ को मारने का विचार त्याग दीजिये क्यूंकि मैंने इनकी रक्षा करने का प्रण लिया है | 

इसी प्रकार काफी देर तक परशुराम जी और हनुमान जी में वाद-विवाद चलता रहा और अंत में क्रोधित हो कर 
परशुराम जी - मुर्ख वानर अब इन क्षत्रियो के साथ मैं तुझे भी मौत के घाट उतार दूँगा| 

परशुराम जी ने अपने पुरे बल से हनुमान जी पर अपने फरसे को फैक दिया और अपने बचाओ में बजरंगबली ने अपनी गदा को फेक कर, उनके प्रहार को विफल कर दिया और उसके उपरांत दोनों में भीषण युद्ध छिड़ गया | 

परशुराम जी ने अपने धनुष पर शक्तिशाली अस्त्र चढ़ा लिए और हनुमान जी पर बाणो की वर्षा आरम्भ कर दी , जिसके जवाब में हनुमान जी ने एक विशाल पत्थर परशुराम और राजाओ के बीच में रख दिया और अपनी गदा लेकर उनपर वार करने लगे, शिव जी से प्राप्त प्रलयंकारी फरसा और महाबली हनुमान जी की गदा से टकराते ही भीसन कम्पन होने लगा, जिससे सभी जीव-जंतु कांपने लगे | 

कथाओ के अनुसार, दोनों का युद्ध इतना भयंकर था, कि  दोनों की गर्जना सुन सम्पूर्ण सृष्टि, स्वर्ग और पाताल सभी कांप उठे, और ये देख कर सभी देवता चिंतित हो गए | 

देवता आपस में बात करने लगे - यदि परशुराम जी और हनुमान जी यूँही एक दूसरे पर प्रहार करते रहे तो अनर्थ होना निश्चित है, हमें इस प्रलयंकारी युद्ध को रोकना होगा | 

जहाँ सारी सृष्टि अपनी स्थिरता खो चुकी थी, उसी समय परशुराम जी और हनुमान जी पाताल लोक जा पहुंचे, जहाँ उन्होंने अपना भयंकर युद्ध जारी रखा जिसके कारन पाताल लोक का भी विनाश होना आरंभ हो गया |  
भगवान् परशुराम के नेत्रों से निकलती ज्वाला को देख हनुमान जी को ये बात समझ में आ गयी कि परशुराम जी को हराना असंभव है परन्तु उनके क्रोध को अगर शांत नहीं किया गया तो सृष्टि का विनाश भी तय है | 
तभी सभी देवता महादेव शिव जी के पास कैलाश जा पहुंचे, जो अपनी समाधी में लीन थे | 

देवताओ ने महादेव से कहा - महादेव ! आंखे खोलिये इस समय आपका समाधी में रहना सृष्टि का विनाश कर सकता है |  धरती पर आपके परम शिष्य परशुराम और आप ही के रूद्र अवतार हनुमान के बीच में भीषण संग्राम चल रहा है, इसे रोकिये वरना सम्पूर्ण सृष्टि का विनाश हो जायेगा | 

देवताओ की याचना सुन स्वम् भगवान शिव को युद्ध रोकने के लिए जाना पड़ा | दोनों के बीच भयंकर युद्ध चल रहा था |

तभी वहाँ देवो के देव महादेव शिव प्रकट हुए और बोले - हे भृगुवंशी परशुराम हनुमान मेरा ही अवतार है और अपने धर्म से बंधे होने के कारन, इन्हे आपसे युद्ध करना पड़ा, परन्तु अब आपका प्रतिशोध पूर्ण हुआ, अब आप अपने पिता जमदग्नि जी का श्राद्ध कीजिये और इस भार से मुक्त होइये  | 

अपने आराध्य व्  गुरु के आदेश को मान कर भगवान् परशुराम जी ने क्षत्रियो के संघार को रोक दिया और इसके पश्चात् वो अपना सब कुछ ब्राह्मणो को दान कर के महेंद्र पर्वत पर घोर तपस्या में लीन हो गए | 
इस तरह भगवान् परशुराम जी और हनुमान जी का युद्ध समाप्त हुआ 

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