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महाकुम्भ 2025
- महाकुम्भ से जुड़े इतिहास
- महाकुम्भ के स्थान
- महाकुम्भ से जुड़ी प्रथा
- अर्थव्यवस्था
- प्रबंधन
कुम्भ मेला शुरू हो चूका है…
कुम्भ मेले के बारे में एक न एक बार कहीं न कहीं किसी न किसी तरह से आपने जरूर सुना होगा |
किसी मूवी में, दादी नानी की कहानियों में या फिर इस कहावत में की दो भाई कुम्भ के मेले में बिछड़ गए |
कुम्भ मेला इस साल 13 जनवरी से प्रारम्भ होकर 25 फरवरी तक प्रयागराज में आयोजित होने वाला है |
कुम्भ मेला के बारे में आपने बहुत सारे होर्डिंग्स में, टीवी में,न्यूज़ चैनल में अब तक देख ही लिया होगा |
इस साल होने वाला कुम्भ मेला अपने आप में बहुत अलग है, ये एक महाकुम्भ है जो की 144 सालों में होता है और इस साल वो 144 वां साल है, यह महाकुंभ प्रयागराज में शुरू हो चूका है|
लेकिन सवाल यहाँ ये आता है कि कुम्भ मेला इतना प्रसिद्ध आखिर होता क्यों है
कुम्भ मेले का नाम दुनिया की लार्जेस्ट गेदरिंग्स की लिस्ट में दर्ज है
ये दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक जनसमूह का स्थान है। यहाँ पर करोड़ो लोग आते हैं जो देश के अंदर से और देश के बाहर से होते हैं |
2019 में प्रयागराज में अर्धकुम्भ बनाया गया था जिसमें लगभग लगभग 200 मिलियन यानी कि 20 करोड़ लोग आये थे |
प्रयागराज उत्तर प्रदेश में है और उत्तर प्रदेश की पूरी पॉपुलेशन ही लगभग लगभग 200 मिलियन के आसपास है, आप इस फिगर से ही अनुमान लगा सकते हैं की कुम्भ मेले में कितनी बड़ी जनसभा होती है |
कल्पना कीजिये करोड़ो लोग जो एक ही आस्था से और परम्परा से जुड़े हैं एक ही जगह पर इकट्ठे हो रहें हैं कुम्भ मेला हिन्दू आस्था का एक महान तीर्थ पर्व है |
- महाकुम्भ 2025
कुम्भ मेला सिर्फ एक धार्मिक उत्सव नही है ये अध्यात्म के तरफ जाने वाला एक रास्ता है | एक ऐसा रास्ता जिसमे ये माना जाता है की गंगा जैसी पवित्र नदियों में स्नान करने से सारे पाप धूल जाते हैं मन की शांति मिलती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है |
तो आइये आज की इस आलेख में हम कुम्भ मेले के इतिहास के बारे में जानेंगे इसमें क्या क्या होता है, यह कहाँ कहाँ पर होता है, इसका क्या महत्व है |
और भी बहुत कुछ कुम्भ मेले से जुड़ा हुआ जो शायद आपको जानना जरुरी है |
- महाकुम्भ से जुड़े इतिहास
पौराणिक कथाओ के अनुसार, कुम्भ मेले का इतिहास समुद्र मंथन से जुड़ा है समुद्र मंथन के बारे में आप सभी ने कहीं न कहीं पढ़ा होगा, जहाँ पर देवताओं और असुरों के बीच में मंथन हुआ था जिससे अमृत की प्राप्ति हुई थी |
आइये इसे कहानी के माध्यम से समझते हैं
हिन्दू धर्म से धर्मग्रंथो में कई ऋषियों का उल्लेख मिलता है उन्ही ऋषियों में एक दुर्वासा ऋषि थे, जो भगवान् शिव के पुत्र कहलाते थे और माना जाता है की भगवान् शिव जी के क्रोध से ऋषि दुर्वासा का जन्म हुआ था, और वो बचपन से ही तेज स्वभाव और गुस्से वाले थे | दुर्वासा ऋषि से जुड़ी कहानियों के बारे में अगर आप जानना चाहते हो तो आप इस लिंक दुर्वासा ऋषि की कहानी पर जा कर पढ़ सकते हो |
एक बार की बात है जब देवराज इंद्र अपने हाथी ऐरावत में सफर कर रहे थे तब रास्ते में उनकी मुलाकात ऋषि दुर्वासा से हुई, दुर्वासा ऋषि ने इंद्र को दिव्य पुष्पमाला भेंट की | इंद्र ने उस माला का सम्मान न करते हुए वह पुष्पमाला ऐरावत को पहना दिया और ऐरावत हाथी ने उस माला को सूड़ में लिया और जमीन में पटक कर कुचल दिया | तब ऋषि दुर्वासा काफी क्रोधित हो गए और इंद्र को यह श्राप दिया की वह तीनो लोक में लक्ष्मीहीन हो जायेंगे जिस श्राप के कारण सारे के सारे देवता कमजोर हो गए, अब जब देवता कमजोर हो गए और इस बात की खबर असुरों को मिली, तो असुरों ने स्वर्गलोक में हमला कर दिया प्रमाणतः यह होता है की सारे असुर जो हैं वह देवताओं को हराकर स्वर्गलोक पर अपना कब्ज़ा जमा लेते हैं इसके बाद सारे देवता ब्रह्मा जी के पास जाते हैं और उन्हें पूरा किस्सा सुनाते हैं ब्रह्मा जी सारे देवताओं को लेकर विष्णु जी के पास जाते हैं और मदद मांगते हैं तब विष्णु जी उन्हें एक सुझाव देते हैं की हमें समुद्र मंथन करना चाहिए और समुद्र मंथन से अमृत निकलेगा |
इस अमृत को पीकर आप अमर हो जाओगे और मृत्यु भी आप को हरा नहीं पायेगी लेकिन समुद्र मंथन का काम देवता अकेले नहीं कर सकते थे इसीलिए उन्हें असुरों की मदद लेनी पड़ी और असुर भी इस मंथन के लिए मान गए क्यूँकि उन्हें ये लगा था कि जैसे ही अमृत निकलेगा तो वो अमृत उन असुरो को भी दिया जायेगा |
मंथन के बाद जैसे ही अमृत कुम्भ यानि कि अमृत से भरा हुआ कलश बाहर निकला देवता और असुरों के बीच में लड़ाई छिड़ गई और इसी लड़ाई के बीच में विष्णु भगवान् ने अपना वाहन जो था यानी कि गरुड़देव, गरुड़ देव को यह अमृत का कलश लेके वहां से उड़ जाने को कहा और जब गरुड़ देव यह कलश लेकर जा रहे थे तब अमृत की चार बूँदे, चार जगह पर गिरती हैं हरिद्वार, उज्जैन,नासिक और प्रयागराज तब से ये 4 जगह महातीर्थ बन जाती है अमृत को पाने के लिए देवता और असुरो के बीच में युद्ध १२ दिनों तक चला था जो कि मनुष्यों के 12 साल के बराबर होता है |
कुम्भ मेले का विकास भारत की पुरानी परम्पराओं से निकल कर आ रहा है
ऐतिहासिक संदर्भ के लिए अगर हम समझना चाहें तो कुम्भ मेले जैसे बड़े सम्मलेन का जिक्र 19 वीं सदी में आपको देखने को मिलता है लेकिन उससे भी पहले अगर इस सम्मलेन का आधार देखा जाये माघ स्नान के जो पर्व होते थे जिसमे लोग पवित्र नदियों में नहाते थे ताकि वो अपने पाप धो सके और मोक्ष की प्राप्ति कर सके |
ऋग्वेद जैसे प्राचीन ग्रंथो में समुद्र मंथन और अमृत की कहानियाँ दी गयी हैं जो कि हमें इस उत्सव के मूल आधार को समझने में मदद करती है |
फिर अगर हम आगे बढ़े तो गुप्त पीरियड और मौर्यन पीरियड के समय अवधि में भी हमें कुम्भ मेले का जिक्र मिलता है |
समय के साथ साथ कुम्भ मेला एकता और आध्यात्मिक ज्ञान का प्रतीक बन गया इस सम्मलेन में बहुत सारे संत सन्यासी और भक्तों का संगम होना शुरू हो गया |
- महाकुम्भ के स्थान
कुम्भ मेला चार पवित्र स्थानों पर होता है, पहला स्थान है
प्रयागराज - प्रयागराज त्रिवेणी संगम के लिए जाना जाता है, जहाँ पर तीन पवित्र नदियाँ मिलती हैं १.गंगा ,२. यमुना, और काल्पनिक सरस्वती नदी |
दूसरा स्थान जहाँ पर कुम्भ आयोजित किया जाता है वो है
हरिद्वार - यहाँ पर पवित्र गंगा नदी पहाड़ो से नीचे उतर आती है, जहाँ पर लोग गंगा स्नान करते हैं अपने मन की शुद्धि और शांति के लिए |
गंगा नदी के अलावा हरिद्वार अपनी शांति आध्यात्मिक ऊर्जा के लिए भी जाना जाता है |
फिर आता है तीसरा स्थान जो है
नासिक - नासिक गोदावरी नदी के किनारे पर स्थित है यहाँ पर भी बहुत सारी धार्मिक मान्यताएं और पुराणों की कहानियां है |
और चौथा कुम्भ स्थान है
उज्जैन - उज्जैन शिप्रा नदी के किनारे स्थित एक शहर है जिसका धार्मिक और आध्यात्मिक इतिहास है और यहाँ पर स्नान भी लोगो के आध्यात्मिक सफर का एक हिस्सा बनता है |
कुम्भ मेला इन चार स्थानों में से किस स्थान पर लगेगा यह निर्णय लिया जाता है एस्ट्रोनॉमिकली अलाइन मेंटस (खगोलीय संरेखण) के हिसाब से जो की बारह साल में होता है ये समय निर्भर करता है ग्रहो की खगोलीय स्थिति पर (on the astronomical positions of the planets) विशेष रूप से जुपिटर यानीं कि बृहस्पति |
बृहस्पति को सूर्य के एक चक्कर को समाप्त करने में लगभग 12 साल लगते हैं और उस बारह साल के हिसाब से स्थान तय किए जाते हैं हर एक स्थान पर एक बार 12 साल में कुम्भ मेला लगता है कुम्भ मेला तब होता है जब बृहस्पति (Jupiter) किसी विशिष्ट राशि चिन्ह (स्पेसिफिक जोडिएक साइन) में प्रवेश करता है और इस समय में किसी भी प्रकार के धार्मिक कार्य शुभ माने जाते हैं |
- हरिद्वार में कुंभ मेला तब मनाया जाता है जब बृहस्पति कुंभ राशि में और सूर्य मेष राशि में होता है |
- प्रयागराज में कुम्भ मेला मनाया जाता है जब जुपिटर टोरेस यानि कि वृषभ राशि के साथ हो और दोनों ही चन्द्रमा और सूर्य की दशा मकर राशि के साथ हो।
- नासिक में कुम्भ मेला मनाया जाता है, जब बृहस्पति सिंह राशि के साथ हो।
- नासिक की तरह सयोंगवश उज्जैन में भी कुम्भ मेला तब मनाया जाता है जब बृहस्पति सिंह राशि के साथ हो।
ऐसा माना जाता है कि जब ये ग्रहो के एक सीधी रेखा में बनती है तो वातावरण आध्यात्मिक ऊर्जा (Environment Spiritual Energy) से भर जाती है।
और इस समय पर इन पवित्र नदियों के पानी को लोग अमृत मानते हैं और इसमें स्नान करने से सारे पापो से मुक्ति हो जाती है और मोक्ष मिलता है।
कुम्भ मेले के अलावा हर छह साल में अर्धकुम्भ मेला भी मनाया जाता है जो कि हरिद्वार और प्रयागराज में होता है। इस साल से 6 साल पहले यानी की 2019 में प्रयागराज में मनाया गया था।
- महाकुम्भ से जुड़ी प्रथा
कुम्भ मेले के हिस्टोरिकल और रिलीजियस सिग्नीफिकेंट को समझने के बाद अगर इस चीज़ पर नजर दौड़ाई जाये कि आखिरकार कुम्भ मेले में होता क्या है तो यहाँ पर शाही स्नान होते हैं
गंगा आरती होती है
हवन पूजन होते हैं और साथ ही साथ
पिंड दान भी किए जाते हैं,
इसी के साथ साथ मेले में बहुत सारे मठों के संत साधु आते हैं
रिलीजियस पर्सनालिटी आती हैं कथा और कीर्तन के इवेंट भी होते हैं
अलग अलग राज्यों से बहुत सारे लोग आते हैं जो अलग अलग संस्कृति को यहाँ पर दर्शाते हैं, अपने लोक गीत, नृत्य और कलाओं का प्रदर्शन भी आपको इस कुम्भ मेले में देखने को मिलेगा।
यूनेस्को (UNESCO) ने कुम्भ मेले को मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत (Intangible cultural heritage of humanity) के रूप में पहचाना है और यह भारत के लिए कुंभ मेले के सांस्कृतिक महत्व को दर्शाता है।
- अर्थव्यवस्था
कुम्भ मेले का महत्व सिर्फ धार्मिक दृष्टिकोण तक ही सिमित नहीं है अगर हम इसे अर्थव्यवस्था की दृष्टि से देखने की कोशिश करें तो कुम्भ मेले के दौरान लाखो लोग एक जगह से दूसरी जगह यात्रा करते हैं जिससे ट्रेवल इंडस्ट्री को बूस्ट मिलता है |
और इकॉनमी को बहुत बड़ा समर्थन मिलता है अगर हम डेटा के हिसाब से समझने का प्रयास करें तो 2019 के कुम्भ मेले को आयोजन करने के लिए सरकार ने 4,200 करोड़ रूपये खर्च किए थे लेकिन इस कुम्भ मेले में जो आर्थिक मूल्य (Economic Value) बनायीं गयी थी वो थी 1,20,000 करोड़ की और साथ ही साथ एक अकेले कुम्भ मेले में 6 लाख लोगों को जॉब मिली थी |
सिर्फ हॉस्पिटैलिटी उद्योग की बात की जाए तो 2,50,000 लोगों को जॉब मिली |
इन बड़े बड़े आंकड़ों के अलावा इस पुरे आयोजन से लोकल बिज़नेस को बहुत बूस्ट मिलता है |
छोटे से टेंडर से लगा के बड़े बड़े रेस्टोरेंट तक जो होते हैं, उन्हें काफी सारा काम मिलता है और वह अपने कुछ दिनों में उतना पैसा कमा लेते हैं जितना उनके साल भर की आय होती है |
- प्रबंधन
अभी तक इस आलेख को पढ़कर आपको यह समझ तो आ ही गया होगा कि कुम्भ मेला अपने आप में क्यों यूनिक है क्यूँकि इसका स्केल इतना बड़ा है अब इतने बड़े मेले को आयोजन करने में चुनौतियां भी आते होंगे |
मेले में उपस्थित होने से लेकर आयोजन करने तक, हर लेवल पे अपने-अपने एक चुनौतियाँ है |
आलेख के प्रारम्भ में जो मैंने आपको बताया था कि दो भाई बिछड़ जाते हैं, ये
कहावत क्यों निकल के आयी है क्यूंकि ऐसा असलियत में होता है |
मल्टीपल पॉइंट्स पे मल्टीपल चुनौतियाँ होते हैं और सरकार इन्हें निपटाने में अपना 100 प्रतिशत देती है |
महाकुम्भ 2025 ट्रैफिक एंड क्राउड मैनेजमेंट के डेटा (Traffic and Management Data) के हिसाब से इस साल लगभग - लगभग 40 करोड़ लोग जो हैं इस महाकुम्भ मेले में उपस्थित होने वाले हैं और इसी चीज़ को ध्यान में रखते हुए जो एरिया है उसे 3200 हेक्टेयर से बढ़ा के 4000 हेक्टेयर कर दिया गया है साथ ही साथ अगर आप देखेंगे तो बहुत सारे पार्किंग एरियाज को भी बढ़ाया गया है |
सीसीटीवी कैमरा लगाए गए हैं और स्क्रीन्स भी बढ़ाई गई है |
आधारभूत सुविधा (Basic Facility) को ध्यान में रखते हुए इस बार महाकुंभ मेले के लिए 1,50,000 से भी ज्यादा टेंट्स लगाए जायेंगे, 1,50,000 से भी ज्यादा टॉयलेट्स लगाए जायेंगे और ये माना जा रहा है कि ये महाकुम्भ मेला अब तक का सबसे बड़ा कुम्भ मेला होने वाला है और इसी चीज़ को ध्यान में रखते हुए, सरकार के द्वारा एक अस्थायी जिला (Temporary District) भी बनाया जायेगा जिसे महाकुम्भ मेला जिला कहा जायेगा | यह जिला एक अस्थायी जिला है, तो जैसे ही महाकुम्भ मेला ख़त्म होगा इस जिले को समाप्त भी कर दिया जायेगा |
दोस्तों ये कुम्भ मेला सिर्फ एक त्यौहार नहीं है, ये भारत की संस्कृति, भारत की आस्था और भारत के इतिहास को दर्शाता हुआ एक जीवन प्रतीक है ये एक समागम है धर्म, संस्कृति और आस्था का | जहाँ लोग अपने घरो से निकलते हैं अपने पाप धोने के लिए, मन की शुद्धि के लिए और अपने आध्यात्मिक सफर की एक नयी शुरुआत करने के लिए। यह कुम्भ मेला सिर्फ भारत के नहीं पुरे विश्व के लिए एक मिशाल है, कि कैसे लोग एक साथ एक सूत्र में बंध के एक आस्था का प्रमाण देते हैं |
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